07-05-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बैलेन्स रखने से ही ब्लैसिंग की प्राप्ति

प्यार के सागर, आनन्द के सागर शिवबाबा, पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों प्रति बोले:-

आज प्रेम स्वरूप, याद स्वरूप बच्चों को प्रेम और याद का रिटर्न देने के लिए प्रेम के सागर बाप इस प्यार की महफिल बीच आये हैं। यह रूहानी प्यार की महफिल रूहानी सम्बन्ध की मिलन महफिल है। जो सारे कल्प में अब ही अनुभव करते हो। सिवाए इस एक जन्म के और कब भी रूहानी बाप का रूहानी प्यार मिल न सके। यह रूहानी प्यार रूहों को सच्ची राहत देता है। सच्ची राह बताता है। सच्ची सर्व प्राप्ति कराता है। ऐसा कभी संकल्प में भी आया था कि इस साकार सृष्टि में इस जन्म में और ऐसी सहज विधि से ऐसे आत्मा और परमात्मा का रूहानी मिलन सन्मुख होगा? जैसे बाप के लिए सुना था कि ऊँचे ते ऊँचा बहुत तेजोमय, बड़े ते बड़ा है, वैसे ही मिलने की विधि भी मुश्किल और बड़े अभ्यास से होगी यह सोचते-सोचते नाउम्मीद हो गये थे। लेकिन बाप ने नाउम्मीद बच्चों को उम्मीदवार बना दिया। दिलशिकस्त बच्चों को शक्तिशाली बना दिया। कब मिलेगा, वह अब मिलन का अनुभव करा दिया। सारे प्रापर्टी का अधिकारी बना दिया। अभी अधिकारी आत्मायें अपने अधिकार को जानते हो ना! अच्छी तरह से जान लिया है वा जानना है?

आज बापदादा बच्चों को देख रूह-रूहान कर रहे थे कि सभी बच्चों को निश्चय भी सदा है, प्यार भी है, याद की लगन भी है, सेवा का उमंग भी है। लक्ष्य भी श्रेष्ठ है। किसी से भी पूछेंगे क्या बनना है? तो सभी कहेंगे ‘लक्ष्मी-नारायण’ बनने वाले हैं। राम-सीता कोई नहीं कहते। 16 हजार की माला भी दिल से पसन्द नहीं करते। 108 की माला के मणके बनेंगे। यही उमंग सभी को रहता है। सेवा में, पढ़ाई में हरेक अपने को किसी से भी कम योग्य नहीं समझते हैं। फिर भी सदा एकरस स्थिति, सदा उड़ती कला की अनुभूति, सदा एक में समाये हुए, देह और देह की अल्पकाल की प्राप्तियों से सदा न्यारे, विनाशी सुध-बुध भूले हुए हो, ऐसी सदा की स्थिति अनुभव करने में नम्बरवार हो जाते हैं। यह क्यों? बापदादा इसका विशेष कारण देख रहे थे। क्या कारण देखा? एक ही शब्द का कारण है।

सब कुछ जानते हैं और सब कुछ सबको प्राप्त भी है, विधि का भी ज्ञान है, सिद्धि का भी ज्ञान है। ‘कर्म और फल’ दोनों का ज्ञान है। लेकिन सदा बैलेन्स में रहना नहीं आता। यह ‘बैलेन्स की ईश्वरीय नीति’ समय पर निभाने नहीं आती। इसलिए हर संकल्प में, हर कर्म में बापदादा तथा सर्व श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठ आशीर्वाद, ब्लैसिंग प्राप्त नहीं होती। मेहनत करनी पड़ती है। सहज सफलता अनुभव नहीं होती। किस बात का बैलेन्स भूल जाता है? एक तो ‘याद और सेवा’। याद में रह सेवा करना - ‘यह है याद और सेवा का बैलेन्स’। लेकिन सेवा में रह समय प्रमाण याद करना, समय मिला याद किया, नहीं तो सेवा को ही याद समझना इसको कहा जाता है - अनबैलेन्स। सिर्फ सेवा ही याद है और याद में ही सेवा है। यह थोड़ा-सा विधि का अन्तर सिद्धि को बदल लेता है। फिर जब रिजल्ट पूछते कि याद की परसेन्टज कैसी रही? तो क्या कहते? सेवा में इतने बिजी थे, कोई भी बात याद नहीं थी। समय ही नहीं था या कहते सेवा भी बाप की ही थी, बाप तो याद ही था। लेकिन जितना सेवा में समय और लगन रहीं उतना ही याद की शक्तिशाली अनुभूति रहीं? जितना सेवा में स्वमान रहा उतना ही निर्मान भाव रहा? ये बैलेन्स रहा? बहुत बड़ी, बहुत अच्छी सेवा की यह स्वमान तो अच्छा है लेकिन जितना स्वमान उतना निर्मान भाव रहे। करावनहार बाप ने निमित्त बन सेवा कराई। यह है निमित्त, निर्मान भाव। निमित्त बने, सेवा अच्छी हुई, वृद्धि हुई, सफलता स्वरूप बनें, यह स्वमान तो अच्छा है लेकिन सिर्फ स्वमान नहीं, निर्मान भाव का भी बैलेन्स हो। यह बैलेन्स सदा ही सहज सफलता स्वरूप बना देता है। स्वमान भी जरूरी है। देह भान नहीं, स्वमान। लेकिन स्वमान और निर्माण दोनों का बैलेन्स न होने कारण स्वमान, देह अभिमान में बदल जाता है। सेवा हुई, सफलता हुई, यह खुशी तो होनी चाहिए। वाह बाबा! आपने निमित्त बनाया मैंने नहीं किया, यह मैं-पन स्वमान को देह अभिमान में ले आता है। याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले स्वमान और निर्मान का भी बैलेन्स रखते। तो समझा बैलेन्स किस बात में नीचे ऊपर होता है!

ऐसे ही जिम्मेवारी के ताजधारी होने के कारण हर कार्य में जिम्मेवारी भी पूरी निभानी है। चाहे लौकिक सो अलौकिक प्रवृत्ति है, चाहे ईश्वरीय सेवा की प्रवृत्ति है। दोनों प्रवृत्ति की अपनी-अपनी जिम्मेवारी निभाने में जितना न्यारा उतना प्यारा! यह बैलेन्स हो। हर जिम्मावारी को निभाना यह भी आवश्यक है लेकिन जितनी बड़ी जिम्मेवारी उतना ही डबल लाइट। जिम्मेवारी निभाते हुए जिम्मेवारी के बोझ से न्यारे हो। इसको कहते हैं - बाप का प्यारा। घबरावे नहीं क्या करूँ, बहुत जिम्मेवारी है। यह करूँ, वा नहीं। क्या करूँ, यह भी करूँ वह भी करूँ, बड़ा मुश्किल है। यह महसूसता अर्थात् बोझ है! तो डबल लाइट तो नहीं हुए ना। डबल लाइट अर्थात् न्यारा। कोई भी जिम्मेवारी के कर्म के हलचल का बोझ नहीं। इसको कहा जाता है - न्यारे और प्यारे का बैलेन्स रखने वाले।

दूसरी बात:- पुरूषार्थ में चलते-चलते पुरूषार्थ से जो प्राप्ति होती उसका अनुभव करते करते बहुत प्राप्ति के नशे और खुशी में आ जाते। बस हमने पा लिया, अनुभव कर लिया। महावीर, महारथी बन गये, ज्ञानी बन गये, योगी भी बन गये। सेवाधारी भी बन गये। यह प्राप्ति बहुत अच्छी है लेकिन इस प्राप्ति के नशें में अलबेलापन भी आ जाता है। इसका कारण? ज्ञानी बने, योगी बने, सेवाधारी बने लेकिन हर कदम में उड़ती कला का अनुभव करते हो? जब तक जीना है तब तक हर कदम में उड़ती कला में उड़ना है। इस लक्ष्य से जो आज करते उसमें और नवीनता आई वा जहाँ तक पहुँचे वही सीमा सम्पूर्णता की सीमा समझ लिया? पुरूषार्थ में प्राप्ति का नशा और खुशी भी आवश्यक है लेकिन हर कदम में उन्नति वा उड़ती कला का अनुभव भी आवश्क है। अगर यह बैलेन्स नहीं रहता तो अबलेलापन, ब्लैसिंग प्राप्त करा नहीं सकता। इसलिए पुरुषार्थी जीवन में जितना पाया उसका नशा भी हो और हर कदम में उन्नति का अनुभव भी हो। इसको कहा जाता है - ‘‘बैलेन्स’’। यह बैलेन्स सदा रहे। ऐसे नहीं समझना हम तो सब जान गये। अनुभवी बन गये। बहुत अच्छी रीति चल रहे हैं। अच्छे बने हो यह तो बहुत अच्छा है लेकिन और आगे उन्नति को पाना है। ऐसे विशेष कर्म कर सर्व आत्माओं के आगे निमित्त एक्जैम्पुल बनना है। यह नहीं भूलना। समझा, किन-किन बातों में बैलेन्स रखना है? इस बैलेन्स द्वारा स्वत: ही ब्लैसिंग मिलती रहती है। तो समझा नम्बर क्यों बनते हैं? कोई किस बात के बैलेन्स में कोई किस बात के बैलेन्स में अलबेले बन जाते हैं।

बाम्बे निवासी तो अलबेले नहीं हो ना? हर बात में बैलेन्स रखने वाले हो ना? बैलेन्स की कला में होशियार हो ना। बैलेन्स भी एक कला है। इस कला में सम्पन्न हो ना! बाम्बे को कहा ही जाता है - सम्पत्ति सम्पन्न देश। तो बैलेन्स की सम्पत्ति, ब्लैसिंग की सम्पत्ति में भी सम्पन्न हो ना! नरदेसावर की ब्लैसिंग है! बाम्बे वाले क्या विशेषता दिखायेंगे? बाम्बे में मल्टीमिल्यनियर्स बहुत है ना। तो बाम्बे वालों को ऐसी आत्माओं को यह अनुभव कराना आवश्यक है कि रूहानी अविनाशी पद्मापद्मपति सर्व खज़ानों की खानों के मालिक क्या होता है, यह उन्हों को अनुभव कराओ। यह तो सिर्फ विनाशी धन के मालिक हैं, ऐसे लोगों को इस अविनाशी खज़ाने का महत्व सुनाकर अविनाशी सम्पत्ति सम्पन्न बनाओ। वो महसूस करें कि यह खज़ाना अविनाशी श्रेष्ठ खज़ाना है। ऐसी सेवा कर रहे हो ना! सम्पत्ति वालों की नजर में यह अविनाशी सम्पत्तिवान आत्मायें श्रेष्ठ हैं, ऐसा अनुभव करें। समझा। ऐसे नहीं सोचना कि इन्हों का पार्ट तो है ही नहीं। अन्त में इन्हों के भी जागने का पार्ट है। सम्बन्ध में नहीं आयेंगे, लेकिन सम्पर्क में आयेंगे। इसलिए अब ऐसी आत्माओं को भी जगाने का समय पहुँच गया है। तो जगाओ, खूब अच्छी तरह से जगाओ। क्योंकि सम्पत्ति के नशे की नींद में सोये हुए हैं। नशे वालों को बार-बार जगाना पड़ता है। एक बार से नहीं जागते। तो अब ऐसे नशे में सोने वाली आत्माओं को अविनाशी सम्पत्ति के अनुभवों से परिचित कराओ। समझा। बाम्बे वाले तो मायाजीत हो ना! माया को समुद्र में डाल दिया ना। तले में डाला है या ऊपर-ऊपर से? अगर ऊपर कोई चीज़ होती है तो फिर लहरों से किनारे आ जाती, तले में डाल दिया तो स्वाहा। तो माया फिर किनारे तो नहीं आ जाती है ना? बाम्बे निवासियों को हर बात में एक्जैम्पुल बनना है। हर विशेषता में एक्जैम्पुल। जैसे बाम्बे की सुन्दरता देखने के लिए सभी दूर-दूर से भी आते हैं ना! ऐसे दूर-दूर से देखने आयेंगे। हर गुण के प्रैक्टिकल स्वरूप एक्जैम्पल बनो। ‘सरलता’ जीवन में देखनी हो तो इस सेन्टर में जाकर इस परिवार को देखो। ‘सहनशीलता’ देखनी हो तो इस सेन्टर में इस परिवार में जाकर देखो। ‘बैलेन्स’ देखना हो तो इन विशेष आत्माओं में देखो। ऐसी कमाल करने वाले हो ना! बाम्बे वालों को डबल रिटर्न करना है। एक जगत अम्बा माँ की पालना का और दूसरा ब्रह्मा बाप की विशेष पालना का। जगत अम्बा माँ की पालना भी बाम्बे वालों को विशेष मिली है। तो बाम्बे को इतना रिटर्न करना पड़ेगा ना। हर एक स्थान, हरेक विशेष आत्मा द्वारा बाप की माँ की विशेष आत्माओं की विशेषता दिखाई दे - इस को कहा जाता है - ‘रिटर्न करना’। अच्छा - भले पधारे। बाप के घर में वा अपने घर में भले पधारे।

बाप तो सदा बच्चों को देख हर्षित होते हैं। एक-एक बच्चा विश्व का दीपक है। सिर्फ कुल का दीपक नहीं, विश्व का दीपक है। हरेक विश्व के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए हैं तो विश्व के दीपक हो गये ना! वैसे तो सारा विश्व भी बेहद का कुल है। उसी नाते से बेहद के कुल के दीपक भी कह सकते हैं। लेकिन हद के कुल के नहीं। बेहद के कुल के दीपक कहो वा विश्व के दीपक कहो। ऐसे हो ना! सदा जगे हुए दीपक हो ना? टिमटिमाने वाले तो नहीं! जब लाइट टिमटिमाती है तो देखने से आँखें खराब हो जाती हैं। अच्छा नहीं लगता है ना। तो सदा जगे हुए दीपक हो ना! ऐसे दीपकों को देख बापदादा सदा हर्षित होते हैं। समझा। अच्छा-

सदा हर कर्म में ‘बैलेन्स’ रखने वाले, सदा बाप द्वारा ब्लैसिंग लेने वाले, हर कदम में उड़ती कला के अनुभव करने वाले, सदा प्यार के सागर में समाये हुए, समान स्थिति में स्थित रहने वाले, पद्मापद्म भाग्यवान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार औन नमस्ते।’’

दादियों से:- सभी ताजधारी रत्न हो ना! सदा जितना बड़ा ताज उतना ही हल्के से हल्के। ऐसा ताज धारण किया है, इस ताज को धारण करके हर कर्म करते हुए भी ताजधारी रह सकते हैं। जो रत्न जड़ित ताज होगा वह फिर भी समय प्रमाण धारण करते और उतारते हैं लेकिन यह ताज ऐसा है जो उतारने की आवश्कता ही नहीं। सोते हुए भी ताजधारी और उठते हैं तो भी ताजधारी। अनुभव है ना! ताज हल्का है ना? कोई भारी तो नहीं हैं! नाम बड़ा - वजन हल्का है। सुखदाई ताज है। खुशी देने वाला ताज है। ऐसा ताजाधारी बाप बनाते हैं जो जन्म-जन्म ताज मिलता रहे। ऐसे ताजधारी बच्चों को देख बापदादा तो हर्षित होते है। बापदादा ने ताजपोशी का दिन अभी से ही मना करके सदा की रसम का नियम बना दिया है। सतयुग में भी ताजपोशी दिवस मनाया जायेगा। जो संगम पर ताजपोशी दिवस मनाया उसी का ही यादगार अविनाशी चलता रहेगा। स्वयं बाप साकार वतन से वानप्रस्थ हुए ना! अव्यक्त वतन में सेवाधारी हैं लेकिन साकार वतन से नो वानप्रस्थ हुए ना! साकार वतन से वानप्रस्थ हो बच्चों को ताज तख्त दे और स्वयं अव्यक्त वतन में चले। तो ताजपोशी का दिन हो गया ना! विचित्र ड्रामा है ना। अगर जाने के पहले बताते तो वण्डरफुल ड्रामा नहीं होता। ऐसा विचित्र ड्रामा है जिसका चित्र नहीं खींचा जा सकता। विचित्र बाप का विचित्र पार्ट है। जिसका चित्र बुद्धि में संकल्प द्वारा भी नहीं खींच सकते, इसको कहते हैं - ‘विचित्र’। इसलिए विचित्र ताजपोशी हुई। बापदादा सदा महावीर बच्चों को ताजपोशी करने वाले ताजधारी स्वरूप में देखते हैं। बापदादा साथ देने में नहीं छिपे लेकिन साकार दुनिया से छिपकर अव्यक्त दुनिया में उदय हो गये। साथ रहेंगे, साथ चलेंगे यह तो वायदा है ही। यह वायदा कभी छूट नहीं सकता। इसलिए तो ब्रह्मा बाप इन्तजार कर रहे हैं। नहीं तो कर्मातीत बन गये तो जा सकते हैं। बन्धन तो नहीं है ना। लेकिन स्नेह का बन्धन है। स्नेह के बन्धन के कारण साथ चलने का वायदा निभाने के कारण बाप को इन्तजार करना ही है। साथ निभाना है और साथ चलना है। ऐसे ही अनुभव है ना। अच्छा हरेक विशेष है। विशेषता एक-एक की वर्णन करें तो कितनी होगी? माला बन जायेंगी। इसलिए दिल में ही रखते हैं, वर्णन नहीं करते। अच्छा-

पार्टियों से:- अमृतवेला सदा शक्तिशाली है? अमृतवेला शक्तिशाली है तो सारा दिन शक्तिशाली रहेगा। अमृतवेला कमज़ोर है तो सारा दिन कमज़ोर। अमृतवेले नियम प्रमाण तो नहीं बैठते हो? यह वरदानों का समय है। वरदानों के समय अगर कोई सोया रहे, सुस्ती में रहे वा विस्मृति रहे, कमज़ोर होकर बैठे तो वरदानों से वंचित रह जायेगा। तो अमृतवेले का महत्व सदा याद रहता है ना? उस समय नींद तो नहीं करते हो? झुटके तो नहीं खाते हो ना? कभी-कभी कोई नींद की अवस्था को भी शान्ति की अवस्था समझते हैं। उन्हों से पूछते हैं कैसे बैठे थे तो कहते हैं - बहुत शान्ति में! तो ऐसी चेकिंग करो - कभी भी शक्तिशाली स्टेज के बीच में यह माया तो नहीं आती है। जो शक्तिशाली हैं उसके आगे माया कमज़ोर हो जाती है।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात – युगलों से:- सदा प्रवृत्ति में रहते इस वृत्ति में रहते हो कि हम न्यारे और सदा बाप के प्यारे हैं! यही वृत्ति सदा प्रवृत्ति में रहती है? वैसे प्रवृत्ति को पर वृत्ति भी कह सकते हैं। पर माना न्यारे। प्रवृत्ति में रहते प्रवृत्ति के बन्धन से परे अर्थात् पर-वृत्ति वा न्यारे और प्यारे। ऐसे बन्धनमुक्त बन प्रवृत्ति के कार्य को निभाने वाले हो ना! बन्धन में बन्धने वाले नहीं लेकिन बन्धन्मुक्त हो कर्म करने वाले। मन का भी बन्धन नहीं। एक है तन का बन्धन, दूसरा है मन का बन्धन, तीसरा है सम्बन्ध का बन्धन, व्यवहार का बन्धन। तो सब बन्धनों से मुक्त। निर्बन्धन आत्मा बंध नहीं सकती। सारे बन्धन लगन की अग्नि से भस्म करने वाले। लगन अग्नि है। अग्नि में जो चीज़ डाले सब भस्म! ऐसी बन्धनमुक्त आत्मा उड़ने के सिवाए रह नहीं सकती। बन्धन फँसाता है, निर्बन्धन उड़ाता है। बन्धन का पिंजड़ा खुला तो पंछी उड़ेगा ना! कोई कितना भी गोल्डन पिंजड़ा लेकर आये उस पिंजड़े में भी फँसने वाले नहीं। यह माया सोने का रूप धारण करके आती है। ‘सोना’ माना आकर्षण करने वाला। यादगार में भी दिखाते हैं - सोना-हिरण बनकर आई। तो सोने का हिरण अच्छा तो नहीं लगता। जब उड़ता पंछी हो गये तो सोना हो या हीरा हो लेकिन पिंजड़े के पंछी नहीं बन सकते।

अधर-कुमारों से - सदा अपने को विजय के तिलकधारी आत्मायें अनुभव करते हो? विजय का तिलक सदा लगा हुआ है? कभी मिट तो नहीं जाता? माया कभी मिटा तो नहीं देती? रोज अमृतवेले इस विजय के तिलक को स्मृति द्वारा ताजा करो तो सारा दिल विजय का तिलक लगा रहेगा। विजय का तिलक है तो राज्य का, भाग्य का भी तिलक है। इसीलिए भक्त भी बहुत बड़े-बड़े तिलक लगाते हैं। तिलक भक्ति की निशानी समझते हैं। प्रभु-प्यार है - इसकी निशानी तिलक लगा देते हैं। आपको कितने तिलक हैं? राज्य का तिलक, भाग्य का तिलक, विजय का तिलक.... यह सब तिलक मिले हैं ना? तिलकधारी ही तख्तधारी हैं। बाप का दिलतख्त जो अभी मिला है ऐसा तख्त भविष्य में भी नहीं मिलेगा। यह बहुत श्रेष्ठ तख्त है। तख्त मिला, तिलक मिला और क्या चाहिए?